Biography : Savitri Bai Phule Life History : सावित्री बाई फुले की जीवनी

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दोस्तों हमारे देश के सामाजिक और शैक्षणिक इतिहास के पन्नों में बहुत सी ऐसी क्रान्तिकारी सख्सियते गुम है जिनका सही मूल्यांकन नहीं हो पाया तथा जो मान-सम्मान और स्थान उनको मिलना चाहिए था वो उनको नहीं मिल पाया| ऐसी ही क्रान्तिकारी सख्सियतों में नाम आता है फूले दम्पति का| महाराष्ट्र के सामाजिक और शैक्षणिक उत्थान में फूले दम्पति का अनुपम योगदान रहा है | लेकिन आँख मूंदकर इतिहास लिखने की पारम्परिक नीति के कारण उनके महान और महत्वपूर्ण कार्यों को इतिहास में यथायोग्य स्थान नहीं दिया गया| आज 3 जनवरी को माँ सावित्री बाई फूले का जन्मदिवस है और इस अवसर पर CSC आपके लिए लेकर आया है उनकी जीवनी के कुछ अंश जिन्हें आप में से बहुत से लोग नहीं जानते होंगें

दोस्तों उन्नीसवीं सदी में भारतीय सामाजिक जीवन दुर्गति की चक्की में पिसता जा रहा था। उन्नीसवीं सदी में छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह, तथा विधवा-विवाह निषेध जैसी कुरीतियां बुरी तरह से व्याप्त थीं। उक्त सामाजिक बुराईयां किसी प्रदेश विशेष में ही सीमित न होकर संपूर्ण भारत में फैल चुकी थीं। हमारा समाज इसी प्रकार की रूढीवादी परम्पराओं से त्रस्त था। फलस्वरूप पूरा समाज ही शोषण, अन्याय और अत्याचार के बोझ से दबकर निष्क्रिय हो चूका था। लोग अन्याय और अत्याचार सहने के आदी हो चुके थे और अपने अधिकारों को ही भूल चुके थे। इसे ही अपनी नियति मानकर अपने भाग्य को कोसते रहते थे।

जिस प्रकार कीचड़ में कमल खिलता है उसी प्रकार मानवता और मनुष्यत्व खो चुके समाज में फूले दम्पति का उदय हुआ। इस सामाजिक दुर्गति ने ही महाराष्ट्र के महान समाज सुधारक, विधवा पुनर्विवाह आंदोलन के तथा स्त्री शिक्षा समानता के अगुआ महात्मा ज्योतिबा फुले को समाज सेवा की ओर आकृष्ट किया। उन्हें समझ आया कि इस शोषण और अन्याय का कारण अशिक्षा और अज्ञानता है तथा उन्हें समाज से इस अज्ञानता को मिटाना है। उन्होंने उन्नीसवीं सदी में महिला शिक्षा की शुरुआत के रूप में घोर ब्राह्मणवाद के वर्चस्व को सीधी चुनौती देने का काम किया था। इसकी शुरुआत उन्होंने अपनी पत्नी से की और उन्हें पढ़ना लिखना सिखाया। इसके बाद सावित्री बाई फूले ने पुरे समाज को शिक्षित करने का दृढनिश्चय किया। सावित्रीबाई फुले देश की पहली महिला अध्यापिका व नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता थीं, जिन्होंने अपने पति ज्योतिबा फुले के सहयोग से देश में महिला शिक्षा की नींव रखी।

प्रारम्भिक जीवन (Childhood & Early Life) –

पूरा नाम       –   सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले
जन्म             –   3 जनवरी 1831
जन्मस्थान    –   नायगांव, जिला – सतारा (महाराष्ट्र)
पिता             –   खंडोजी नावसे पाटिल
माता             –   लक्ष्मीबाई
विवाह           –   ज्योतिराव फुले

सावित्री बाई फुले का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगांव में आज ही के दिन 3 जनवरी 1831 को हुआ था. उनके पिता का नाम खंडोजी नावसे पाटिल और माता का नाम लक्ष्मीबाई था. उनका पूरा परिवार कृषि कार्य ही करता था. उस दौर में लड़कियां तो दूर लड़कों को भी पढ़ने नहीं भेजा जाता था. इसके बाद 9 वर्ष की अल्पायु में ही उनका विवाह 1840 में 13 साल के महात्मा ज्योतिराव फुले के साथ कर दिया गया.  सावित्रीबाई और ज्योतिराव को दो संताने थी जिसमे से एक संतान यशवंतराव को उन्होंने एक विधवा ब्राह्मण गोद लिया था. सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह से जीया जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछूत मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना। वे एक कवियत्री भी थीं उन्हें मराठी की आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता था।

शिक्षा के क्षेत्र में कार्य और विरोध

1848 में पुणे में अपने पति के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के साथ उन्होंने एक विद्यालय की स्थापना की। एक वर्ष में सावित्रीबाई और महात्मा फुले पाँच नये विद्यालय खोलने में सफल हुए। तत्कालीन सरकार ने इन्हे सम्मानित भी किया। एक महिला प्रिंसिपल के लिये सन् 1848 में बालिका विद्यालय चलाना कितना मुश्किल रहा होगा, इसकी कल्पना शायद आज भी नहीं की जा सकती। लड़कियों की शिक्षा पर उस समय सामाजिक पाबंदी थी। सावित्रीबाई फुले उस दौर में न सिर्फ खुद पढ़ीं, बल्कि दूसरी लड़कियों के पढ़ने का भी बंदोबस्त किया, वह भी पुणे जैसे शहर में।

सावित्रीबाई फुले ने अपने पति क्रांतिकारी नेता ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले. उन्‍होंने पहला और अठारहवां स्कूल भी पुणे में ही खोला.

वे स्कूल जाती थीं, तो विरोधी लोग पत्थर मारते थे। उन पर गंदगी फेंक देते थे। आज से 160 साल पहले बालिकाओं के लिये जब स्कूल खोलना पाप का काम माना जाता था कितनी सामाजिक मुश्किलों से खोला गया होगा देश में एक अकेला बालिका विद्यालय।

अन्य सामाजिक कार्य (Other Social Activism) –

सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका हैं। हर बिरादरी और धर्म के लिये उन्होंने काम किया। जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फैंका करते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं। अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती हैं।

भारत में नारी शिक्षा के लिये किये गये पहले प्रयास के रूप में महात्मा फुले ने अपने खेत में आम के वृक्ष के नीचे विद्यालय शुरु किया। यही स्त्री शिक्षा की सबसे पहली प्रयोगशाला भी थी, जिसमें सगुणाबाई क्षीरसागर व सावित्री बाई विद्यार्थी थीं। उन्होंने खेत की मिटटी में टहनियों की कलम बनाकर शिक्षा लेना प्रारंभ किया। सावित्रीबाई ने देश की पहली भारतीय स्त्री-अध्यापिका बनने का ऐतिहासिक गौरव हासिल किया। धर्म-पंडितों ने उन्हें अश्लील गालियां दी, धर्म डुबोने वाली कहा तथा कई लांछन लगाये, यहां तक कि उनपर पत्थर एवं गोबर तक फेंका गया। भारत में ज्योतिबा तथा सावि़त्री बाई ने शुद्र एवं स्त्री शिक्षा का आंरभ करके नये युग की नींव रखी। इसलिये ये दोनों युगपुरुष और युगस्त्री का गौरव पाने के अधिकारी हुये । दोनों ने मिलकर ‘सत्यशोधक समाज‘ की स्थापना की। इस संस्था की काफी ख्याति हुई और सावित्रीबाई स्कूल की मुख्य अध्यापिका के रूप में नियुक्त र्हुइं। फूले दंपति ने 1851 मंे पुणे के रास्ता पेठ में लडकियों का दूसरा स्कूल खोला और 15 मार्च 1852 में बताल पेठ में लडकियों का तीसरा स्कूल खोला।

देश की पहली महिला अध्यापिका व नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता

लेकिन एक ऐसी महिला जिन्होंने उन्नीसवीं सदी में छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह, तथा विधवा-विवाह निषेध जैसी कुरीतियां के विरूद्ध अपने पति के साथ मिलकर काम किया पर उसे हिंदुस्तान ने भुला दिया.ऐसी महिला को हमारा शत-२ नमन…

महात्मा फुले द्वारा अपने जीवन काल में किये गये कार्यों में उनकी धर्मपत्नी सावित्रीबाई का योगदान काफी महत्वपूर्ण रहा। लेकिन फुले दंपति के कामों का सही लेखा-जोखा नहीं किया गया। भारत के पुरूष प्रधान समाज ने शुरु से ही इस तथ्य को स्वीकार नहीं किया कि नारी भी मानव है और पुरुष के समान उसमें भी बुद्धि है एवं उसका भी अपना कोई स्वतंत्र व्यक्तित्व है । उन्नीसवीं सदी में भी नारी गुलाम रहकर सामाजिक व्यवस्था की चक्की में ही पिसती रही । अज्ञानता के अंधकार, कर्मकांड, वर्णभेद, जात-पात, बाल-विवाह, मुंडन तथा सतीप्रथा आदि कुप्रथाओं से सम्पूर्ण नारी जाति ही व्यथित थी।

उनकी बनाई हुई संस्था ‘सत्यशोधक समाज‘ ने 1876 व 1879 के अकाल में अन्नसत्र चलाये और अन्न इकटठा करके आश्रम में रहने वाले 2000 बच्चों को खाना खिलाने की व्यवस्था की। 28 जनवरी 1853 को बाल हत्या प्रतिबंधक गृह की स्थापना की, जिसमें कई विधवाओं की प्रसूति हुई व बच्चों को बचाया गया। सावित्रीबाई द्वारा तब विधवा पुनर्विवाह सभा का आयोजन किया जाता था। जिसमें नारी सम्बन्धी समस्याओं का समाधान भी किया जाता था।

जीवन के अंतिम दिन (Later Years) –

महात्मा ज्योतिबा फुले की मृत्यु सन् 1890 में हुई। तब सावित्रीबाई ने उनके अधूरे कार्यों को पूरा करने के लिये संकल्प लिया। सावित्रीबाई की मृत्यु 10 मार्च 1897 को प्लेग के मरीजांे की देखभाल करने के दौरान हुयी।

Reference :

This article is a collection of extracts cited from the research paper presented in Two-Days National Seminar on “Mahatma Jyotiba Phule: Life, Works and Vision” on 14-15 October 2013 organised by Mahtma Jyotiba Phule Chair, Department of History, Kurukshetra University, Kurukshetra. Proper references can be found on the main paper. इसके अलावा कुछ Content Wikipedia से भी लिया गया है

Note :- यदि सावित्री बाई फुले के बारे में दी गई इस जानकारी में आपको कुछ भी गलत लगता है या आपके पास About Savitri Bai Phule In Hindi मैं और अधिक जानकारी है तो तुरंत मुझे कमेंट और ईमेल कर इससे अवगत कराये जिसको में यहाँ Update करूँगा |

||Thank You||

तो दोस्तों ये Post थी Savitri Bai Phule के बारे में हिन्दी में | उम्मीद करता हूँ कि आपको यह Biography Post पसंद आई होगी | दोस्तों अगर आपको यह post पसंद आये तो इसे बाकी दुसरे लोगों और अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करे साथ ही मेरे Facebook Page को Like करे | Dear Friends, मेरी जिम्मेदारी बनती है कि मैं आपको कुछ अच्छी और सही जानकारी प्रदान करू और अगर आप यहाँ से कुछ सीख रहे हो तो यह आपकी जिम्मेदारी बनती है कि उस जानकारी को निचे दिए गए links पर Click कर शेयर करे और अपने दोस्तों तक पहुँचाये |

Chandan Saini

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RD Meena
RD Meena
6 years ago

some writer say that phooley partner had non child which is contradictory to your article.What is fact may please be cleared with fact.